कर्नाटक में होने वाले सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण को लेकर एक नया मामला सामने आया है। लिंगायतों की शीर्ष संस्था ने समुदाय के सदस्यों से अपील की है कि वे आगामी सर्वेक्षण में खुद को वीरशैव-लिंगायत के रूप में पहचान दर्ज कराएं। इसका कारण यह है कि राजनीतिक रूप से प्रभावशाली यह समुदाय हिंदुओं से अलग एक स्वतंत्र धर्म के रूप में मान्यता चाहता है।
इस संबंध में आधिकारिक पत्र जातिगत गणना प्रक्रिया शुरू होने से कुछ सप्ताह पहले जारी किया गया है। राज्य में इस सर्वे को शुरू किया जा रहा है और तीन महीने में पूरा करने का लक्ष्य तय किया गया है।
अगर लिंगायत समुदाय इस आह्वान को स्वीकार करता है, तो इससे बीजेपी के हिंदू वोट बैंक पर असर पड़ सकता है।
रिपोर्टों के अनुसार, पिछली बार हुए सर्वेक्षण में कर्नाटक में लिंगायत समुदाय की संख्या कुल जनसंख्या का लगभग 11 प्रतिशत दर्ज की गई थी। यह आंकड़ा राज्य की 18 प्रतिशत अनुसूचित जाति और 13 प्रतिशत मुस्लिम आबादी से कम है।
हालांकि, लिंगायत नेताओं का दावा है कि उनकी आबादी वास्तव में 17 प्रतिशत है। कई नेताओं ने इस अनुमानित आंकड़े पर आपत्ति जताते हुए कहा कि रिपोर्ट में बताई गई संख्या वास्तविकता से काफी कम है।