एक साथ छः पुस्तकों का विमोचन उच्च अकादमिक परिवेश का प्रमाण : प्रो० पूनम टंडन
– यूरोपीय विद्वानों द्वारा भारतीय समाज पर गतिहीनता का आरोप गलत : प्रो० राजवंत राव
– चिंतन की दुनिया में रचनात्मक हस्तक्षेप हैं लोकार्पित पुस्तकें: प्रो० प्रशांत श्रीवास्तव
गोरखपुर। सुपर फास्ट टाइम्स
दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास विभाग और अयोध्या अध्ययन केंद्र के संयुक्त तत्वावधान में प्राच्य विद्या की छः महत्वपूर्ण पुस्तकों का लोकार्पण डीडीयू के संवाद भवन में मंगलवार को हुआ। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो० पूनम टंडन ने कहा कि एक साथ छः पुस्तकों का विमोचन प्राचीन इतिहास विभाग और अयोध्या अध्ययन केंद्र की सक्रियता,चिंतन व उच्च अकादमिक परिवेश का प्रमाण है। इससे प्राचीन इतिहास विभाग के गौरवपूर्ण अतीत का भी पता चलता है। ये पुस्तकें शोध और विमर्श की दिशा में रचनात्मक हस्तक्षेप हैं। अयोध्या अध्ययन केंद्र के संयोजक प्रो० राजवंत राव ने इन सभी पुस्तकों से परिचित कराते हुए ‘भारतीय अभिलेखों में स्त्री’ पर कहा कि यूरोपीय विद्वानों द्वारा स्त्री के सन्दर्भ में भारतीय समाज पर गतिहीनता का आरोप उचित नहीं है। उन्होंने बताया कि इक्ष्वाकुवंशी राजाओं ने स्त्री को बुद्धिमत्ता व दक्षता के आधार पर प्रशासनिक पद पर आसीन किया। इन राजाओं ने स्त्री की बुद्धिमत्ता के लिए प्रशंसा की,सौंदर्य के लिए नहीं। उन्होंने प्रो० विपुला दुबे की इस पुस्तक को उनके गंभीर चिंतन व शोध का परिणाम बताया। मुख्य अतिथि लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रसिद्ध मुद्राशास्त्री प्रो० प्रशांत श्रीवास्तव ने ‘भारत का विश्व संस्कृतियों से संवाद’ पर कहा कि संवादधर्मी संस्कृतियां मरती नहीं, एक-दूसरे से मिलकर समृद्ध होती हैं। भारतीय संस्कृति ने विश्व की संस्कृतियों से निरंतर आदान-प्रदान किया है। उन्होंने प्रो० राजवंत राव की इस पुस्तक को संकीर्णता के खिलाफ संवादधर्मी भारतीय संस्कृति को रेखांकित करने वाला बताया।प्रो० राव की पुस्तक देश और दुनियां की मौजूदा जटिलताओं में संवाद को ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में समाधान के तौर पर प्रस्तुत करती है। ‘प्राचीन भारत में क़ृषि एवं जलसंसाधन’ के लेखक कृतकार्य आचार्य प्रो० जयमल राय ने पुस्तक लोकार्पण पर ख़ुशी व्यक्त की और कुलपति प्रो० पूनम टंडन द्वारा विश्वविद्यालय में स्वस्थ अकादमिक वातावरण बनाने हेतु उन्हें साधुवाद दिया। इसी क्रम में प्रो० दिवाकर प्रसाद तिवारी की पुस्तक ‘गोरखपुर परिक्षेत्र का ऐतिहासिक परिदृश्य’, डॉ० सुधीर कुमार राय की ‘पूर्व मध्यकालीन भारत में भू राजस्व नीति एवं कृषक’ तथा डॉ० मणिन्द्र यादव की ‘प्राचीन भारत की आर्थिक स्थिति’ पुस्तक को शोध व प्राच्य विद्या की दुनियां में उपलब्धि बताया। विभागाध्यक्ष प्रो० प्रज्ञा चतुर्वेदी ने स्वागत वक्तव्य दिया। पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो० दिग्विजयनाथ मौर्य ने आभार व्यक्त किया।डॉ० विनोद कुमार ने मंच संचालन किया। कार्यक्रम में प्रो० चितरंजन मिश्र समेत विभिन्न विभागों के अध्यक्ष,अधिष्ठाता,आचार्य समेत बड़ी संख्या में शोधार्थी व नागरिक समाज के लोग उपस्थित रहे।