इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन यानी आईएसएस पर 18 दिन बिताने के बाद भारतीय एस्ट्रोनॉट शुभांशु शुक्ला 14 जुलाई को दोपहर 3 बजे पृथ्वी के लिए रवाना हो गए. वह 15 जुलाई को पृथ्वी पर लैंड करेंगे. हालांकि, सवाल यह उठता है कि स्पेस में इतने दिन बिताने के बाद शुभांशु शुक्ला किस बीमारी की चपेट में आ सकते हैं? अब पृथ्वी के वातावरण में उनके लिए क्या-क्या खतरे होंगे?
सेहत के लिए कितनी खतरनाक है स्पेस यात्रा?
अंतरिक्ष यात्रा इंसान के शरीर के लिए असाधारण अनुभव है, लेकिन इससे कई फिजिकल और मेंटल प्रॉब्लम्स होने का खतरा भी रहता है. यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ईएसए) के फ्लाइट सर्जन डॉ. ब्रिगिट गोडार्ड के मुताबिक, अंतरिक्ष यात्रियों को माइक्रोग्रैविटी के कारण कई तरह की दिक्कतें हो सकती हैं. इनमें फ्लूड शिफ्ट, हड्डियों की डेंसिटी में कमी, मसल्स लॉस और स्पेस मोशन सिकनेस आदि चीजें शामिल हैं. शुभांशु शुक्ला को भी इन खतरों का सामना करना पड़ सकता है.
स्पेस मोशन सिकनेस (Space Motion Sickness)
डॉ. गोडार्ड के मुताबिक, शुभांशु शुक्ला को स्पेस में शुरुआती दिनों में स्पेस मोशन सिकनेस का अनुभव हुआ था, जिसमें सिर में भारीपन और चक्कर जैसी दिक्कतें शामिल थीं. यह कंडीशन माइक्रोग्रैविटी के कारण होती है, जहां शरीर का संतुलन और दिशा-ज्ञान प्रभावित होता है. वहीं, अंतरिक्ष यात्रियों को पृथ्वी पर लौटने के बाद भी इस तरह की दिक्कतें हो सकती हैं. आमतौर पर ये परेशानियां कुछ दिनों में ठीक हो जाती हैं, लेकिन कुछ मामलों में यह कंडीशन लंबे समय तक बनी रह सकती है.
नासा के हालिया रिसर्च के मुताबिक, करीब 70 पर्सेंट अंतरिक्ष यात्रियों को इस कंडीशन से जूझना पड़ता है. हालांकि, शुभांशु फाइटर पायलट हैं. ऐसे में उनका अनुभव इस कंडीशन से निपटने में मददगार रहा है. इसके बावजूद पृथ्वी पर आने के बाद सात दिन के पुनर्वास कार्यक्रम में उन पर नजर रखी जाएगी.
बोन और मसल्स लॉस
अंतरिक्ष में माइक्रोग्रैविटी के कारण हड्डियों और मांसपेशियों पर खराब असर पड़ता है. शुभांशु ने अपने मिशन के दौरान ‘मायोजेनेसिस’ नामक प्रयोग किया, जिसमें माइक्रोग्रैविटी में मांसपेशियों के कमजोर होने की प्रक्रिया की स्टडी की गई. अंतरिक्ष में हड्डियों की डेंसिटी में 1-2% प्रति माह की दर से कमी आ सकती है. इससे ऑस्टियोपोरोसिस जैसी दिक्कतें होने का खतरा रहता है.
रेडिएशन का खतरा
अंतरिक्ष में रेडिएशन का खतरा भी रहता है. शुभांशु ने अपने मिशन के दौरान रेडिएशन के खतरे से निपटने को लेकर एक्सपेरिमेंट किए, जो भविष्य के लंबे मिशनों के लिए अहम हैं. ह्यूस्टन, टेक्सास के नासा जॉनसन स्पेस सेंटर में कार्यरत डॉ. एलिजाबेथ जॉन्स के मुताबिक, अंतरिक्ष में कॉस्मिक रेज और सोलर रेडिएशन के कारण डीएनए लॉस और कैंसर का खतरा बढ़ सकता है. शुभांशु और उनके साथी एस्ट्रेनॉट्स ने ‘रेड नैनो डोसीमीटर’ का इस्तेमाल करके रेडिएशन चेक किया, जिससे भविष्य में अंतरिक्ष यात्रियों को बेहतर सुरक्षा मिलेगी.
मेंटल हेल्थ और टेंशन
अंतरिक्ष में काफी वक्त तक रहने से मेंटल हेल्थ पर भी असर पड़ता है. शुभांशु ने अपने मिशन के दौरान कई एक्सपेरिमेंट किए, जिनमें ब्रेन के ब्लड फ्लो और आंखों की गति पर स्टडी की गई. ये रिसर्च मेंटल हेल्थ और न्यूरोलॉजिकल इफेक्ट को समझने में मदद करेंगे.
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