सुप्रीम कोर्ट ने विवाह को जीवन का अभिन्न अंग मानते हुए बुधवार को 22 वर्षीय मानसिक दिव्यांग महिला को 50.87 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया। महिला बचपन में सड़क दुर्घटना में घायल हो गई थी, जिसके कारण उसे 75 प्रतिशत स्थायी रूप से दिव्यांग हो गई। यह आदेश न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति के. वी. विश्वनाथन की पीठ ने दिया।
शीर्ष अदालत ने दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा दिए गए 11.51 लाख रुपये के मुआवजे को करीब पांच गुना बढ़ाते हुए 50.87 लाख रुपये कर दिया। इसमें आय का नुकसान, दर्द और पीड़ा, विवाह की संभावनाओं का समाप्त होना, परिचारक खर्च और भविष्य के चिकित्सा उपचार को भी शामिल किया गया।
महिला को लेकर शीर्ष कोर्ट ने क्या कहा?
महिला, जो जून 2009 में सात साल की उम्र में एक सड़क दुर्घटना का शिकार हुई थी, उस समय वह अपने परिवार के साथ पैदल घर जा रही थी। तेज रफ्तार कार ने उसे टक्कर मार दी, जिसकी वजह से उसे स्थायी मानसिक दिव्यांगता हो गई। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महिला ने न केवल अपना बचपन खो दिया, बल्कि अपना वयस्क जीवन भी खो दिया। कोर्ट ने यह भी कहा कि विवाह और जीवनसाथी का होना मनुष्य के जीवन का स्वाभाविक हिस्सा है और महिला के लिए विवाह और बच्चों के पालन-पोषण का विचार अब लगभग असंभव है।
महिला के वकील ने अदालत को बताया कि चिकित्सा प्रमाण पत्र के अनुसार महिला की 75 प्रतिशत बौद्धिक दिव्यांगता है और वह कक्षा दो के स्तर तक कौशल प्राप्त कर सकती है। उन्होंने उच्च न्यायालय के उस दृष्टिकोण को गलत करार दिया, जिसमें महिला को अंशकालिक परिचारिका की आवश्यकता होने की बात कही गई थी। दिल्ली हाई कोर्ट ने नवंबर, 2017 में 11.51 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया था।
“महिला जीवनभर किसी अन्य व्यक्ति पर निर्भर रहेगी”
हाई कोर्ट के फैसले को खारिज करते हुए पीठ ने कहा कि महिला जीवनभर किसी अन्य व्यक्ति पर निर्भर रहेगी और उम्र बढ़ने के बावजूद वह मानसिक रूप से अब भी कक्षा दो में पढ़ने वाली बच्ची की तरह ही रहेगी। इस मामले में मुआवजे की राशि को बढ़ाने का निर्णय मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण के पहले के आदेश के बाद आया था, जिसमें मुआवजा राशि केवल 5.90 लाख रुपये थी। इसके बाद महिला ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और फिर सुप्रीम कोर्ट ने मुआवजे की राशि में बढ़ोतरी का आदेश दिया।