……..गीत…….
इश्क़ में बहके-से तुम हो,
लहके लहके हम सनम।
हो गया मौसम दीवाना,
महके महके हम सनम॥
बहती ये ठंडी हवाएं,
छूती जब जब हैं बदन ।
बेक़रारी बढ़ती जाए,
कर लूँ चाहे सौ जतन॥
चांद भी हमको सताए,
करके यूं अठखेलियाँ।
बादलों में छुप छुप जाए,
दिखलाए शैतानियां॥
शब के हर मंज़र में यूँ,
रहती है बेताबियां।
कसमसाते दिल में जैसे,
मिलने की बेचैनियाँ॥
सुर्ख़-सी जवाँ शोखियों में,
लिपटे लिपटे तुम सनम।
हुस्न की अंगड़ाइयों में,
उलझे उलझे हम सनम॥
इश्क़ में बहके-से तुम हो……
जन्नते जैसे ख़्वाबों की,
रौनकें दिखलाती है
चिलमनों को बँद कर लूं तो,
चाहतें सिखलाती है॥
उम्मीदों से भरी निगाहें,
तुमको देखना चाहती हैं।
धड़कनों के संग संग सांसे,
तेरा साथ निभाती हैं॥
टकराती काली घटाएं,
चमचमाती बिजलियां।
दिल में जैसे हिल रहीं हों,
थरथराती तितलियां
इश्क़ की मदहोशियों में,
सँवरे सँवरे तुम सनम ।
तेरी यादों के साए में,
बिखरे-बिखरे हम सनम॥
इश्क़ में बहके-से तुम हो…..
डॉ दीपिका माहेश्वरी ‘सुमन’ (अहंकारा) नजीबाबाद