योगी सरकार में मंत्री और केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल के पति आशीष पटेल ने इस्तीफे की धमकी दी है। वह प्राविधिक शिक्षा विभाग में डिप्लोमा सेक्टर में विभागध्यक्ष के पदों पर पदोन्नति में गड़बड़ी का आरोप लगने से नाराज हैं।
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उन्होंने कहा- मेरी राजनीतिक हत्या कराने की साजिश रचि जा रही है। सीएम अगर आवश्यक समझें तो आरोपों की CBI से जांच करा लें। पीएम मोदी जिस दिन आदेश करेंगे। मैं एक सेकेंड की देरी किए बिना मंत्री पद से इस्तीफा दे दूंगा।
मंत्री आशीष पटेल ने रविवार देर रात X पर 3 पोस्ट किए। चलिए पढ़ते हैं-
- सबको पता है कि मुझे बदनाम करने के पीछे कौन है। आगे और भी ऐसे आरोप लगेंगे। ऐसे मिथ्या आरोपों से मैं डरने वाला नहीं हूं। कोई कितनी भी साजिश कर ले, लेकिन अपना दल (एस) वंचितों के हक़ की लड़ाई से पीछे नहीं हटने वाला है।
- सामाजिक न्याय की जंग के लिए अपना दल (एस), प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व और गृहमंत्री अमित शाह के सानिध्य में 2014 में NDA का अंग बना था। प्रधानमंत्री का जिस दिन आदेश होगा बिना एक सेकेंड की देरी के मंत्री पद से इस्तीफा दे दूंगा।
- मीडिया और सोशल मीडिया पर मेरी राजनीतिक हत्या करने के लिए साजिश के तहत तथ्यहीन और अनर्गल आरोप लगाए जा रहे हैं। मेरे मंत्रित्व काल में प्राविधिक शिक्षा विभाग में वंचित वर्ग से आने वाले कार्मिकों के हितों की रक्षा के बारे में पूरे उत्तर प्रदेश को पता है।
क्या है पूरा मामला-
प्राविधिक शिक्षा विभाग में राजकीय पॉलिटेक्निक कॉलेजों में विभागाध्यक्ष की सीधी भर्ती करने की जगह कॉलेजों में कार्यरत व्याख्याताओं को पदोन्नत कर विभागाध्यक्ष बनाया गया है। आरोप है कि अगर सीधी भर्ती से पद भरे जाते तो पिछड़े और दलित वर्ग को आरक्षण का लाभ मिलता, लेकिन 177 व्याख्याताओं को नियम के खिलाफ पदोन्नत करने से आरक्षित वर्ग वंचित रह गया।
सूत्रों के मुताबिक, इसके विरोध में आशीष पटेल के OSD ने भी इस्तीफा दे दिया है। भाजपा विधायक मीनाक्षी सिंह ने मुख्यमंत्री और SIT को पत्र लिख विभाग में हर साल 50 करोड़ रुपए की वित्तीय अनियमितता का आरोप लगाया है। उन्होंने मामले की जांच की भी मांग की है।
अनुप्रिया पटेल के साथ उनके पति आशीष पटेल। तस्वीर 4 महीने पहले की है।
अपना दल (एस) और योगी सरकार के बीच लोकसभा चुनाव के बाद से टकराव तेजी से बढ़ा है। जानकार मानते हैं- इसकी शुरुआत 69 हजार सहायक शिक्षक भर्ती से ही हो गई थी। अपना दल (एस) का नेतृत्व इस बात से नाराज है कि सरकार की मशीनरी का चुनाव के दौरान व्यवहार ठीक नहीं था। सरकार के स्तर से भी कोई मदद नहीं मिली।
1- शिक्षक भर्ती में आरक्षण: बेसिक शिक्षा परिषद में 69 हजार सहायक अध्यापक भर्ती में SC और OBC को आरक्षण के नियमानुसार लाभ न मिलने का मुद्दा अपना दल (एस) ने ही उठाया था। इस विवाद का आज तक हल नहीं निकला। जबकि, योगी सरकार नियमानुसार आरक्षण का लाभ देने का दावा कर रही है।
2- सीएम योगी को लिखा पत्र: अनुप्रिया पटेल ने 27 जून को मुख्यमंत्री योगी को पत्र लिखा। इसमें आरोप लगाया कि सरकारी विभागों में हो रही भर्ती में SC-ST और OBC के आरक्षण नियमों का पालन नहीं हो रहा। इन कैटेगरी के योग्य अभ्यर्थी नहीं मिलने के नाम पर उनके पद सामान्य वर्ग के अभ्यर्थियों को दिए जा रहे हैं। सरकार ने अनुप्रिया के पत्र का जवाब देते हुए बताया कि सभी विभागों की सरकारी भर्ती में आरक्षण नियमों का पालन किया जा रहा है।
3- प्रमुख सचिव का विवाद: अपना दल (एस) के कार्यकारी अध्यक्ष और योगी सरकार में प्राविधिक शिक्षा मंत्री आशीष पटेल का विभाग के प्रमुख सचिव एम. देवराज से विवाद हो गया। मंत्री आशीष पटेल ने एम. देवराज की ओर से किए जा रहे तबादलों पर आपत्ति जताई। मंत्री ने तबादले की पत्रावली मुख्यमंत्री कार्यालय को भेज दी। नतीजा यह रहा कि विभाग में तबादला सत्र शून्य रहा। अपना दल (एस) के पदाधिकारी मानते हैं कि एम. देवराज को सरकार का संरक्षण है।
4- मंच से आरक्षण का मुद्दा फिर उठाया: अपना दल (एस) के संस्थापक सोनेलाल पटेल की जयंती पर लखनऊ में कार्यक्रम हुआ। इस दौरान अनुप्रिया ने सरकारी विभागों की भर्ती में SC-ST और OBC के आरक्षण का मुद्दा उठाया। उन्होंने लोकतंत्र में राजा EVM से पैदा होने की बात भी दोहराई।
5- टोल टैक्स का मुद्दा उठाया: अनुप्रिया पटेल ने वाराणसी-शक्तिनगर मार्ग पर अहरौरा में अतिरिक्त टोल बूथ लगाने पर आपत्ति जताई। उनका कहना है, NHAI के नियमों के अनुसार एक टोल से दूसरे टोल के बीच की दूरी 40 किलोमीटर होनी चाहिए। लेकिन, मार्ग में 20 किलोमीटर की दूरी फत्तेपुर और अहरौरा में दो टोल प्लाजा लगाकर वाहन स्वामियों से गलत टोल वसूला जा रहा है।
6- अनुप्रिया पटेल ने योगी सरकार के नजूल संपत्ति विधेयक का विरोध किया। उन्होंने X पोस्ट में लिखा- नजूल भूमि संबंधी विधेयक को विमर्श के लिए प्रवर समिति को भेजा गया है। बिना विमर्श के यह विधेयक लाया गया। उन्होंने विधेयक को गैर जरूरी बताया। यह भी कहा कि ये विधेयक आम जनमानस की भावनाओं के खिलाफ है। यूपी सरकार को इसे वापस लेना चाहिए। इस मामले में जिन अधिकारियों ने गुमराह किया है, उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।