छू लेते हो जब लफ़्ज़ों से आप हमारा अंतरमन।
संतुष्ट ह्रदय हो प्रणयमिलन सा खिल खिल जाए ये चितवन॥
जरूरी नहीं है हाथ तुम्हारा इन हाथों में होना।
जीवन में आवश्यक है सच्चे भावों का होना।
मन में तुम संकल्प करो सदा महकाओगे ये चितवन ॥
छू लेते हो….
मन को भाता है ये तुम्हारा शब्दों का प्यारा लेखन।
तेरे स्वर विस्तार से होता मन का हर कोना पावन।
जीवन पर्यंत भरते रहना मीठे सुर से ये चितवन॥
छू लेते हो…
✍️ डॉ दीपिका माहेश्वरी सुमन (अहंकारा) संस्थापिका सुमन साहित्यिक परी नजीबाबाद बिजनौर (यू०पी०)