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काशी में स्थित सेंट मेरी इंग्लिश चर्च है सबसे पुराना: 212 साल पहले बना, जहां क्वीन एलिजाबेथ ने की थी मॉर्निंग प्रेयर 

पूरी दुनिया में क्रिसमस की धूम है। रात 12 बजे के करीब चरनी में प्रभु यीशु के जन्म के साथ ही कैरोल गीतों की मिठास पूरे वातावरण में फैल गयी। इन कैरोल के बीच काशी का सबसे पुराना प्रोटेस्टेंट चर्च, सेंट मेरी इंग्लिश चर्च भी कैरोल गीतों से गूंज उठा। गैरिस

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चर्च 18वीं शताब्दी में बना और इसकी धूम 90 के दशक तक रही। साल 1961 में क्वीन एलीजाबेथ जब पंडित नेहरू के साथ काशी आयीं तो वो इसी चर्च में मॉर्निंग प्रेयर में शामिल हुईं। लेकिन आज यह चर्च जर्जर अवस्था में पहुंच गया है। चर्च में कुछ स्थान पर नया प्रेयर स्थल बनाया गया।

काशी के इस सबसे पुराने चर्चा का वाराणसी से क्या रिश्ता है? इसे किसने डिजाइन किया और इसकी खासियत क्या है? इन सब विषयों पर दैनिक भास्कर ने प्रोटेस्टेंट चर्च के पूर्व प्रीस्ट रहे संजय दान से बात की और इस चर्चा और काशी का रिश्ता जाना…

वाराणसी के कैंटोनमेंट इलाके में साल 1812 में बना सेंट मेरी इंग्लिश चर्च।

18वीं शताब्दी में बनाया गया चर्च, सबसे पुराना रेवरन संजय दान इस समय मुग़लसराय स्थित दो चर्चों सेंट पॉल और सेंट स्टीफन चर्च के प्रभारी पुरोहित हैं। इसके पहले संजय दान वाराणसी के सेंट मेरी इंग्लिश चर्च और लाल गिरजा के प्रभारी पुरोहित कई वर्षों तक रहे। उन्होंने बताया- सेंट मेरिज इंग्लिश चर्च काशी में सबसे ज्यादा पुराना है। उसे 18वीं शताब्दी में बनाया गया था। डेनियल केरी ने इसकी नीव साल 1810 में रखी और ये दो साल 1812 में बनकर तैयार हुआ था। ऐसे में यह सबसे पुराना है।

डेनियल केरी ने इसकी नीव साल 1810 में रखी थी। इसे बनने में दो साल का समय लगा था।

जेम्स प्रिन्सेफ ने किया था सेंट मेरिज इंग्लिश चर्च को डिजाइन संजय दान ने बताया – वाराणसी को सजाने और संवारने वाले और यहां का प्रसिद्ध शाही नाला और अन्य चीजों का आर्किटेक्ट करने वाले बड़े आर्किटेक्चर जेम्स प्रिन्सेफ ने ही इस चर्च को डिजाइन किया था। उन्होंने इस बारीकी से सजाया था। उन्होंने कहा कि कहा जा सकता है कि प्रोटेस्टेंट चर्च काशी ही नहीं उत्तर भारत का सबसे पुराना चर्च होगा।

गैसियन चर्च के नाम से मशहूर कैंटोनमेंट में होने की वजह से यह मिलेट्री के लोगों के लिए बनाया गया था। संजय दान ने बताया- इस चर्च में अब वो फर्नीचर नहीं बचे हैं क्योंकि यह कई जगहों से वक्त के थपेड़ों के साथ अब गिर गया है। पहले यहां ऐसी बेंच होती थी जिसमें मिलेट्री मैन अपनी बन्दूक को आसानी से रख के प्रेयर कर सकें। सभी सीटों में ऐसा बनाया गया था।

कैंटोनमेंट में होने की वजह से यह मिलेट्री के लोगों के लिए बनाया गया था।

1962 में क्वीन एलीजाबेथ ने की थी प्रेयर संजय दान के पिता और साल 1954 से इस चर्च से जुड़े हुए दान साहब ने बताया- इसमें कई सारे सामान तांबे और पीतल के थे जो चोरी भी हो गए। अब वहां की दशा ठीक नहीं है। उन्होंने बताया जब वो 24 साल के थे उस समय क्वीन एलीजाबेथ आयीं थीं। तब मै वहीं था। मैंने उन्हें सामने से देखा था। उन्होंने वहां मॉर्निंग प्रेयर की थी। दान साहब यहां कारपेंटर की जॉब करते थे।

अब जानिए क्या है इस चर्च की वर्तमान स्थिति…

काशी के जीएचवी मॉल के सामने स्थित सेंट मेरिज चर्च का मुख्य गेट है। लेकिन इसपर जंगली घास लिपटी हुई है जिससे इसका नाम स्पष्ट नहीं होता है। अंदर जाने पर 100 मीटर चलकर हम चर्च तक पहुंचे। इस चर्च की मुख्य बिल्डिंग बाहर से ठीक दिखाई देती है। अंदर जाने पर पता चला चर्च का सिर्फ बाहरी स्वरूप बचा हुआ है और अंदर सब कुछ ध्वस्त है। चर्च की सेक्रेटरी की पहल पर अंदर कुछ हिस्से में प्रेयर के लिए जगह बनाई है और यहाँ प्रेयर होती है।

चल रही थी क्रिसमस की तैयारी अंदर ध्वस्त हो चुके स्ट्रक्चर में एक स्थान पर प्रेयर के लिए रेनोवेशन कर स्थान बनाया गया है। इस स्थान पर लोग साफ सफाई कर रहे थे और फूलों से सजावट की जा रही थी। हमने बात की तो उन्होंने बताया- इस संबंध में यहां की सेक्रेटरी डॉ अनीता ही आप को जानकारी दे पाएंगी। अंदर साफ-सफाई के साथ ही चर्च में फूल लगाए जा रहे थे। क्रिसमस की तैयारी जोरों से चल रही थी।

अंदर एक स्थान पर प्रेयर के लिए रेनोवेशन कर स्थान बनाया गया है।

यह कैंटोनमेंट बोर्ड का चर्च चर्च की सेक्रेटरी डॉ अनीता पॉल ने बताया- यह चर्च बेसिकली नार्थ इंडिया चर्च है और इसी नाम से रजिस्टर्ड भी कैंटोनमेंट का बंगला नंबर 61, जिसमें इसका निर्माण किया गया है। यह मिलेट्री कम्पाउंड में बनाया गया है। इसपर पूरी तरह से कैंटोनमेंट बोर्ड का अधिकार है। चर्च जर्जर है लेकिन हम इसमें कोई भी कार्य बिना बोर्ड की अनुमति के नहीं कर सकते हैं। हमने अंदर की प्रेयर के लिए स्थान बनाने को कहा तो हमें अनुमति मिली लेकिन उसमें भी शर्त थी कि बाहरी बिल्डिंग को किसी भी तरह से छुआ नहीं जाएगा और अंदर ही जो करना है वो किया जाएगा।

हम पुरखों से कर रहे हैं इसकी देखभाल डॉ अनीता ने बताया- हमारी माता जी के जमाने से हम इसकी सेवा कर रहे हैं। जब तक हम हैं इसकी सेवा करते रहेंगे। यदि हमारी समाज मदद करेगा तो हम बोर्ड से अनुमति लेकर अंदर से और भव्य बनवाने की कोशिश करेंगे।

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