सुप्रीम कोर्ट आज उस अहम फैसले का ऐलान करेगा, जिसमें दिल्ली और आसपास के चार जिलों (नोएडा, गाजियाबाद, गुरुग्राम और फरीदाबाद) से सभी आवारा कुत्तों को पकड़कर शेल्टर में रखने के विवादित आदेश को चुनौती दी गई है। सवाल यह है कि इस आदेश को रोका जाएगा, संशोधित किया जाएगा या जस का तस लागू रहेगा।
तीन जजों की पीठ सुनाएगी फैसला
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ (न्यायमूर्ति संदीप मेहता और एनवी अंजरिया के साथ) यह तय करेगी कि आदेश पर पूरी तरह रोक लगे या इसमें बदलाव हो या इसे बरकरार रखा जाए।
आदेश और उसका विस्तार
जस्टिस जेबी पारदीवाला और आर महादेवन की बेंच ने आदेश दिया था कि आठ हफ्तों में सभी आवारा कुत्तों को पकड़कर स्थायी शेल्टरों में रखा जाए और उन्हें दोबारा सड़कों पर न छोड़ा जाए। बाद में लिखित आदेश में इसे फरीदाबाद तक बढ़ा दिया गया। साथ ही, 5,000 क्षमता वाले शेल्टर आठ हफ्तों में बनाने का निर्देश भी दिया गया।
विवाद और आपत्ति
इस आदेश पर तुरंत विवाद खड़ा हो गया। कई एनजीओ और पशु कल्याण समूहों ने कहा कि यह ‘प्रिवेंशन ऑफ क्रुएल्टी टू एनिमल्स एक्ट’ और ‘एनिमल बर्थ कंट्रोल (ABC) नियमों’ के खिलाफ है। इन नियमों के अनुसार कुत्तों का नसबंदी और टीकाकरण कर उन्हें उसी इलाके में वापस छोड़ना होता है, न कि बड़े पैमाने पर शेल्टरों में बंद करना।
मुख्य न्यायाधीश ने बदली बेंच
आलोचना के बाद और नई याचिकाओं के मद्देनज़र, मुख्य न्यायाधीश ने मामले को पारदीवाला बेंच से वापस लेकर तीन जजों की बड़ी बेंच (न्यायमूर्ति नाथ के नेतृत्व में) को सौंपा। इस बेंच ने लंबी सुनवाई की और फैसला सुरक्षित रखा था, जो अब सुनाया जाएगा।
सुनवाई में कोर्ट की नाराजगी
सुनवाई के दौरान बड़ी बेंच ने दिल्ली सरकार और नगर निगमों को फटकार लगाई कि वे अपने ही बनाए नियमों को लागू नहीं कर रहे। अदालत ने कहा कि इंसानों की सुरक्षा और पशु-कल्याण, दोनों ही प्रभावित हो रहे हैं। कोर्ट ने दिल्ली सरकार से पूछा कि वह कानून का पालन करेगी या नहीं।
सरकार और विपक्षी पक्षों की दलीलें
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बच्चों पर हमलों और डॉग बाइट से मौतों के उदाहरण देते हुए कहा कि तुरंत हस्तक्षेप ज़रूरी है। उन्होंने कहा कि कुत्तों को मारना नहीं है, लेकिन अलग करना, नसबंदी और इलाज करना जरूरी है। वहीं, कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी और सिद्धार्थ लूथरा समेत कई वरिष्ठ वकीलों ने एनजीओ की ओर से कहा कि यह आदेश अवैध और अमान्य है। उन्होंने सरकार के अपने आंकड़े दिखाए कि दिल्ली में हाल में डॉग बाइट से कोई मौत नहीं हुई, जिससे आदेश की आधारहीनता उजागर होती है।
आदेश में पशु-कल्याण शर्तें
लिखित आदेश में शेल्टर में कुत्तों के साथ क्रूरता न हो, उन्हें भूखा न रखा जाए, भीड़भाड़ से बचा जाए, कमजोर कुत्तों को अलग रखा जाए और समय पर पशु-चिकित्सा मिले – जैसी शर्तें भी जोड़ी गईं। साथ ही, एनिमल वेलफेयर बोर्ड की मंजूरी से गोद लेने की अनुमति दी गई, लेकिन गोद लिए कुत्तों को सड़क पर छोड़ने पर “कड़ी कार्रवाई” का निर्देश था।
क्यों शुरू हुआ मामला
यह पूरा मामला उस समय उठा जब छह साल की बच्ची की कुत्ते के काटने के बाद रेबीज से मौत हो गई। पारदीवाला बेंच ने कहा था कि डॉग बाइट की घटनाएँ “चिंताजनक पैटर्न” दिखा रही हैं और स्थानीय निकाय सार्वजनिक स्थानों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में नाकाम रहे हैं।