सरकार का कहना है कि भारतीय समुद्री खाद्य निर्यात पर असर कई कारकों से तय होता है, जैसे उत्पादों की विविधता, बाजार की मांग, गुणवत्ता मानक और निर्यातकों-आयातकों के बीच समझौते.
निर्यातकों के कल्याण को प्राथमिकता
केंद्रीय पशुपालन और डेयरी राज्य मंत्री जॉर्ज कुरियन ने कहा कि सरकार निर्यातकों, उद्योग संघों और मछुआरों के हितों को प्राथमिकता दे रही है. प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना और फिशरीज एंड एक्वाकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट फंड के जरिए फिशिंग हार्बर, लैंडिंग सेंटर्स, कोल्ड चेन और प्रोसेसिंग सुविधाओं को आधुनिक बनाया जा रहा है. इसके साथ ही री-सर्क्युलेटरी एक्वाकल्चर सिस्टम, बायोफ्लोक तकनीक, गुणवत्ता परीक्षण लैब और निर्यातोन्मुखी प्रजातियों को बढ़ावा देने पर जोर दिया जा रहा है.
MPEDA की अहम भूमिका
मरीन प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉरिटी (MPEDA) निर्यातकों का पंजीकरण, गुणवत्ता मानक तय करने और विदेशी आयातकों से समन्वय स्थापित करने का कार्य कर रही है. साथ ही अंतरराष्ट्रीय मेलों, प्रदर्शनियों और खरीदार-विक्रेता बैठकों में भाग लेकर भारतीय समुद्री उत्पादों को वैश्विक स्तर पर प्रमोट किया जा रहा है.
स्थिर निर्यात सुनिश्चित करने के प्रयास
सरकार अमेरिकी बाजार सहित अन्य निर्यात बाजारों में स्थिरता बनाए रखने के लिए कदम उठा रही है. समुद्री प्रजातियों के आकलन के लिए ‘मरीन मैमल स्टॉक असेसमेंट प्रोजेक्ट’ लागू किया गया है. प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत झींगा ट्रॉलरों में टर्टल एक्सक्लूडर डिवाइस लगाने में मदद दी जा रही है, ताकि समुद्री कछुओं का संरक्षण हो सके.
इसके अलावा सी रैंचिंग, कृत्रिम रीफ और जैव विविधता संरक्षण जैसे उपाय भी किए जा रहे हैं. इन प्रयासों का लक्ष्य मछुआरों की आजीविका सुरक्षित करना, प्रजातियों और निर्यात बाजारों का विविधीकरण करना और भारत को एक सतत एवं जिम्मेदार समुद्री खाद्य निर्यातक के रूप में स्थापित करना है.