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रंगनाथ भगवान का दस दिवसीय ब्रह्मोत्सव: सोने की पुण्य कोटि में विराजमान भगवान ने किया नगर भ्रमण, भक्तों को दिए दर्शन

 

दस दिवसीय ब्रह्मोत्सव में शनिवार को भगवान होली खेलेंगे वहीं रविवार को 60 फीट ऊंचे रथ में विराजमान होंगे

उत्तर भारत के दक्षिण भारतीय शैली के विशालतम रंगनाथ मंदिर का दस दिवसीय ब्रह्मोत्सव वैदिक मंत्रोचार और पूजा पाठ के साथ सोमवार को शुरू हुआ। ब्रह्मोत्सव के पहले दिन सुबह के समय भगवान रंगनाथ माता गोदा (लक्ष्मी जी) के साथ सोने से बनी पुण्य कोटि में विराजमा

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भगवान के सेनापति ने लिया व्यवस्थाओं का जायजा

ब्रह्मोत्सव की शुरुआत से पहले भगवान रंगनाथ के सेनापति विष्वक्सेन जी का आव्हान पूजन अर्चन किया गया।पूजन अर्चन के बाद उनको चांदी से बनी पालकी में विराजमान किया गया। इसके बाद परम्परागत वाद्य यंत्रों की ध्वनि के साथ शुरू की गयी सवारी। विष्वक्सेन जी ब्रह्मोत्सव के लिए की गयी व्यवस्थाओं का जायजा लेने चांदी की पालकी में विराजमान होकर निकले।

भगवान के सेनापति विश्वकसेन जी ने उत्सव में की गई व्यवस्थाओं का जायजा लिया

रंगनाथ मंदिर में ब्रह्मोत्सव की परंपरा

वृंदावन का रंगनाथ मंदिर उत्तर भारत में दक्षिण भारतीय शैली का सबसे विशाल मंदिर है। इस मंदिर के मुख्य भगवान श्री गोदारंगमन्नार हैं। रंगनाथ मंदिर को दिव्य देश की उपाधि मिली हुई है यानि वह देवस्थान जहां हर दिन भगवान् का उत्सव हो। इन्हीं उत्सवों में प्रमुख है ब्रह्मोत्सव ,जिसके बारे में कहा जाता है कि यह उत्सव स्वयं भगवान नारायण के लिए ब्रह्मा जी ने किया था। श्री रंगनाथ मंदिर में वर्षों से ब्रह्मोत्सव प्रति वर्ष होली के बाद कृष्ण पक्ष की दौज से शुरू होता है।

ब्रह्मोत्सव के शुभारंभ पर वैदिक पाठ करते दक्षिण भारतीय ब्राह्मण

उत्सव में दक्षिण भारतीय वाद्य यंत्र बजाते कलाकार

ध्वजारोहण से शुरू हुआ उत्सव

दस दिवसीय ब्रह्मोत्सव की शुरुआत सोमवार को प्रातः शुभ मुहूर्त में ध्वजारोहण की परंपरा के साथ हुई। शुभ मुहूर्त में मंदिर के पुरोहित विजय मिश्रा ने वैदिक मंत्रों के मध्य उत्सव प्रारम्भ करने के लिए मंदिर के श्री महंत गोवर्धन रंगाचार्य जी महाराज के निर्देशन में ध्वजारोहण के समय भगवान गरुड़ जी का पूजन पुजारी राजू स्वामी से कराया। इसका उद्देश्य भगवान गरुड़ जी द्वारा समस्त देवी देवताओं को ब्रह्मोत्सव की सुचना देना है और समस्त उत्सव की बागडोर गरुड़ जी के हाथों में सौंपना है। पूजन के बाद सोने से बने स्तम्भ पर गरुड़ जी की ध्वजा चढ़ा दी जाती है।

गरुड़ स्तंभ पर भगवान गरुड़ जी की 51 फीट लंबी ध्वजा धारण कराई गई

सोने से बनी पुण्य कोटि में विराजमान भगवान रंगनाथ की सवारी

पुण्य कोटि के दर्शन से होते हैं मनोरथ पूरे

ध्वजारोहण के बाद भगवान की पालकी को वाहन मंडप पर ले जाया गया। जहां से उनको स्वर्ण निर्मित पुण्य कोठी में विराजमान किया गया। इसके बाद हाथी, घोड़े और दक्षिण भारतीय वाद्य यंत्र व बैंड की धार्मिक मधुर ध्वनि के बीच सवारी मंदिर ने बड़े बगीचा के लिए प्रस्थान किया। इस दौरान जगह जगह भक्तों ने भगवान की आरती उतारी। पुण्य कोटि की सवारी के दर्शन से भक्त के मनोरथ पूरे होते हैं। श्री ब्रह्मोत्सव का समापन 26 मार्च को पुष्पक विमान की सवारी के साथ होगा।

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