महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव में प्रचंड जीत के बाद से ही महायुति के बीच मुख्यमंत्री के पद को लेकर चर्चा जारी है। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस का सीएम बनना तय माना जा रहा है। आपको बता दें कि इससे पहले देवेंद्र फडणवीस साल 2014 से 2019 के बीच महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री का पद संभाल चुके हैं। हालांकि, इसके बाद वह एक बार 80 घंटे के लिए भी महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने थे। आइए जानते हैं इस पूरे घटनाक्रम के बारे में विस्तार से।
टूट गया था भाजपा-शिवसेना गठबंधन
साल 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भाजपा और शिवसेना के गठबंधन ने एक बार फिर से बहुमत हासिल किया था। भाजपा ने अकेले दम पर 105 सीटों पर जीत हासिल की थी। हालांकि, तभी शिवसेना की ओर से 2.5-25 साल मुख्यमंत्री पद के बंटवारे की बात रखी गई। इसके बाद ऐसा हुआ जो किसी ने कभी सोचा ही नहीं था। भाजपा और शिवसेना का 30 साल पुराना गठबंधन टूट गया।
सुबह-सुबह फडणवीस ने ली शपथ
23 नवंबर की तारीख को महाराष्ट्र के तत्कालीन राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने राज्य से राष्ट्रपति शासन हटाने के निर्णय लिया। इसके कुछ घंटे बाद सुबह 7 बजकर 30 मिनट पर देवेंद्र फडणवीस ने महाराष्ट्र के सीएम और अजीत पवार ने डिप्टी सीएम के रूप में शपथ ले ली।
80 घंटे बाद ही देना पड़ा इस्तीफा
फडणवीस के शपथ लेने के ठीक बाद कांग्रेस, शिवसेना और एनसीपी ने सुप्रीम कोर्ट में अपील कर दी। इसके बाद 26 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि 27 नवंबर को फ्लोर टेस्ट कराया जाए और कहा कि पूरी प्रक्रिया शाम 5 बजे तक पूरी होने चाहिए और इसका सीधा प्रसारण भी होना चाहिए। हालांकि, इसके तुरंत बाद अजित पवार ने डिप्टी सीएम पद से इस्तीफा दे दिया। वहीं, विकल्प खत्म होने के बाद आखिरकार देवेंद्र फडणवीस ने भी इस्तीफा दे दिया। शपथ ग्रहण के चौथे दिन ही 26 नवंबर को फडणवीस ने इस्तीफा दे दिया।
सबसे कम समय के मुख्यमंत्री
फडणवीस के इस्तीफे के बाद कांग्रेस, शिवसेना और एनसीपी ने एक साथ मिलकर सरकार का गठन किया और इस गठबंधन को महाविकास अघाड़ी नाम दिया। वहीं, महाराष्ट्र राज्य के निर्माण के बाद से देवेंद्र फडणवीस इकलौते ऐसे सीएम रहे जिनका कार्यकाल सिर्फ 80 घंटे तक चला। हालांकि, कांग्रेस, शिवसेना और एनसीपी की सरकार 2.5 साल ही चली। इसके बाद एकनाथ शिंदे ने शिवसेना में बगावत कर दी और विधायकों के साथ मिलकर भाजपा के साथ सरकार बना ली। वहीं, आगे चलकर अजित पवार ने भी एनसीपी में बगावत कर दी और ज्यादातर विधायकों के साथ सरकार का हिस्सा बन गए।