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चीन क्यों नहीं चाहता कि दलाई लामा का अगला जन्म भारत में हो? जानिए इसके पीछे की असली

 

Dalai Lama Reincarnation: 14वें दलाई लामा के उत्तराधिकारी के पुनर्जन्म को लेकर अब विवाद केवल आध्यात्मिक नहीं, बल्कि रणनीतिक बन चुका है. भारत के लिए यह चुनौती इसलिए भी बड़ी है क्योंकि दलाई लामा और निर्वासित तिब्बती सरकार के मेजबान यहीं रहते हैं. चीन इस मुद्दे पर भारत पर जबरदस्त दबाव बना सकता है ताकि किसी भी प्रकार का पुनर्जन्म भारत की भूमि पर न हो. खुफिया सूत्रों के मुताबिक, यह मामला अब धार्मिक अधिकारों से ज्यादा राजनीतिक दबदबे का हो गया है.

दलाई लामा का पुनर्जन्म और चीन की आपत्ति
14वें दलाई लामा तेनज़िन ग्यात्सो ने अपने 90वें जन्मदिन पर घोषणा की कि उनके उत्तराधिकारी की नियुक्ति की प्रक्रिया गदेन फोडरंग ट्रस्ट के माध्यम से होगी. उन्होंने स्पष्ट किया कि इस प्रक्रिया में किसी भी बाहरी संस्था या सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं होगा. चीन ने इस बयान को खारिज करते हुए कहा कि पुनर्जन्म की प्रक्रिया 18वीं सदी की छिंग वंश की ‘गोल्डन अर्न’ परंपरा और चीनी सरकार की मंजूरी के अनुसार होनी चाहिए.

गदेन फोडरंग ट्रस्ट को पुनर्जन्म की मान्यता का अधिकार
दलाई लामा ने अपने बयान में कहा कि दलाई लामा की संस्था बनी रहेगी और गदेन फोडरंग ट्रस्ट, जो कि एक गैर-लाभकारी संस्था है और 2015 में स्थापित की गई थी, को ही उनके भविष्य के पुनर्जन्म को मान्यता देने का अधिकार होगा. उन्होंने दोहराया कि “इस विषय में कोई अन्य हस्तक्षेप नहीं कर सकता.” यह बयान चीन की उस रणनीति को सीधी चुनौती देता है जिसमें वह भारत में किसी वैध उत्तराधिकारी को उभरने से रोकने की कोशिश कर रहा है.

चीन की रणनीति और वैश्विक प्रभाव
सूत्रों के मुताबिक, चीन पिछले एक दशक से एक राज्य समर्थित 15वें दलाई लामा की नियुक्ति की तैयारी कर रहा है ताकि तिब्बती समुदाय के धार्मिक प्रतिरोध को कम किया जा सके. लेकिन दलाई लामा के इस ऐलान से किसी भी चीनी नियुक्त उत्तराधिकारी की वैधता तिब्बती और वैश्विक बौद्ध समुदाय की नजरों में खत्म हो जाती है. भारत में यदि पुनर्जन्म होता है तो दो समानांतर दलाई लामा अस्तित्व में होंगे – एक वैध निर्वासन में और दूसरा चीन का प्रतिनिधि ल्हासा में.

भारत-चीन संबंधों में नया मोड़
यह पूरा मामला भारत और चीन के बीच पहले से तनावपूर्ण सीमाई और राजनीतिक संबंधों को और गहरा कर सकता है. सूत्रों का कहना है कि तिब्बती और वैश्विक बौद्ध समाज चीन द्वारा थोपे गए किसी भी धर्मगुरु को स्वीकार नहीं करेंगे. इसका असर चीन की धार्मिक कूटनीति पर खासतौर से मंगोलिया, लद्दाख, सिक्किम और भूटान जैसे क्षेत्रों में पड़ेगा.

चीन की आंतरिक प्रतिक्रिया और संभावित रणनीति
खुफिया सूत्रों ने बताया कि इस चुनौती का सामना करने के लिए चीन तिब्बत में गिरफ्तारियां, निगरानी और वैचारिक दमन को और तेज कर सकता है.
वह बौद्ध मठों और शैक्षणिक संस्थानों को भी निशाना बना सकता है. इस बीच, चीन जल्दबाजी में एक प्रतिद्वंद्वी दलाई लामा की घोषणा कर सकता है ताकि भारत में संभावित उत्तराधिकारी की बढ़ती वैश्विक स्वीकार्यता को रोका जा सके.

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